Sunday, July 12, 2009
Saturday, June 27, 2009
चाहा था एक फूल ने
दो चार बार हम जो कभी हम हँस-हँसा लिए
सारे जहान ने हाथ मे पत्थर उठा लिए
रहते हमारे पास तो यह टूटते ज़रूर
अच्छा किया जो आपने सारे सपने चुरा लिए
चाहा था एक फूल ने की साफ़ रहे राहें उसकी
हमने खुशी से कांटे अपने पांव मे चुभा लिए
जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए
अब भी किसी दराज़ मे मिल जायेंगे तुम्हे
वो ख़त जो तुम्हे दे न सके, लिख लिखा लिए
सारे जहान ने हाथ मे पत्थर उठा लिए
रहते हमारे पास तो यह टूटते ज़रूर
अच्छा किया जो आपने सारे सपने चुरा लिए
चाहा था एक फूल ने की साफ़ रहे राहें उसकी
हमने खुशी से कांटे अपने पांव मे चुभा लिए
जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए
अब भी किसी दराज़ मे मिल जायेंगे तुम्हे
वो ख़त जो तुम्हे दे न सके, लिख लिखा लिए
Friday, June 19, 2009
अकेला ख्वाब
अजनबी सी इस दुनिया मे अकेला एक ख्वाब हूँ
सवालो से खफा एक चोट सा जवाब हूँ
जो न समझ सके उनकी लिए 'कौन'
जो समझ गए उनके लिए किताब हूँ
आंखों से देखोगे तोः खुश पाओगे मुझको
दिल से देखोगे तोः दर्द का सैलाब हूँ
सवालो से खफा एक चोट सा जवाब हूँ
जो न समझ सके उनकी लिए 'कौन'
जो समझ गए उनके लिए किताब हूँ
आंखों से देखोगे तोः खुश पाओगे मुझको
दिल से देखोगे तोः दर्द का सैलाब हूँ
Saturday, May 23, 2009
अजनबी
मुझे याद हैं वो रास्ते जो लेट जाते थे ज़मीन पर जब हम चला करते थे
मुझे याद है वो पेड़जो अपनी छांवो फैलाते थे जब उनकी गोद में हम सोते थे
मुझे याद है वो पत्थर जिनकी खामोशी ने हमारा हर राज़ जाना है पर जुबां पे उनकी ताले थे
मुझे याद है वो समुंदर जिनकी लहरों ने खुशी खुशी हमारे आसूं अपना लिए थे जब हम रोये थे
मुझे याद है वो फूल जो अपनी खूबसूरती मेरे कहने पे तुम्हे दे गए थे
मुझे याद हो वो बादल जिनकी बारिश मे हमारे बुरे दिन बहे गए थे
मुझे याद हैवो हवा जो हर बार मुझ तक तुम्हारे पैगाम पहुचती थी
अब तुम नहीं हो तो
रास्ते
पेड़
पत्थर
समुंदर
फूल
बादल
हवा
सब अजनबी से लगते है
Wednesday, May 20, 2009
मेरी आंखों को दिन रात रुलाने वाले
तू भी तड़पे
मुझको हर वक्त सताने वाले
हर घड़ी तेरे लिए आँहें भरता है दिल
प्यार की शमा
मेरे दिल मे जलाने वाले
दिल की दुनिया मे बसी है तेरी सूरत
अपनी कसमे
अपने वादों को भुलाने वाले
बेवफा कहूँ तुझको या कहूँ तुझको जालिम
हर घड़ी
मेरी मुहब्बत को ठुकराने वाले
रब से दुआ है पूरे हो तेरे हर सपने
मेरी मुहब्बत
केहर एक ख्वाब को मिटाने वाले
जाए तोः जाए कहाँ दिलकश तुम बताओ
हो गए है दुश्मन
अब तोः हमारे चाहने वाले
तू भी तड़पे
मुझको हर वक्त सताने वाले
हर घड़ी तेरे लिए आँहें भरता है दिल
प्यार की शमा
मेरे दिल मे जलाने वाले
दिल की दुनिया मे बसी है तेरी सूरत
अपनी कसमे
अपने वादों को भुलाने वाले
बेवफा कहूँ तुझको या कहूँ तुझको जालिम
हर घड़ी
मेरी मुहब्बत को ठुकराने वाले
रब से दुआ है पूरे हो तेरे हर सपने
मेरी मुहब्बत
केहर एक ख्वाब को मिटाने वाले
जाए तोः जाए कहाँ दिलकश तुम बताओ
हो गए है दुश्मन
अब तोः हमारे चाहने वाले
Saturday, April 4, 2009
Raat aur Khawab
रात को जब मै सोया था
तो क्या मालूम था
खवाब की दहलीज़ पे तुम दस्तक दोगी....
तुम्हारे साथ गुज़रे वो लम्हे
हकीकत से लगते हैं
जो मैंने छुआ था तुम्हे
जो तुम मुस्कराई थी....
हमारे बीच की वो बातें
वो तुम्हारी सासों का छुना मुझे
सब हकीकत सा लगता है....
सुबह जब आँख खुली
तो दिल बेचैन हो गया....
एक बोझ सा कुछ तो था सीने पे....
जो न उतारते बनता था
और न रखते ही बनता था....
खवाब टूट चुका था....
तुम नहीं थी....
वो साथ नहीं था....
फिर वहीँ दूरियां.....वही फासले....
एक ही ख्याल दिल मे आता था..
की काश वो रात कभी खत्म न होती....
पर कुछ सोच कर तसल्ली कर लेते हैं....
ख्वाब ही सही..............कुछ पल का साथ तो था....
New Creation for Old Story
तितलियों को पकड़ना उस की आदत थी
हर एक से लड़ना उस की आदत थी
वो जिसको तन्हाई से डर लगता था
मगर तन्हाई में रहना उस की आदत थी
वो मेरे हर झूठ से खुश होता
जिसे हमेशा सच बोलने की आदत थी
वो एक आंसू भी गिरने पर खफ़ा होता था
जिसे तन्हाई में रोने की आदत थी
वो कहता था कि मुझे भूल जाएगा
जिसे मेरी हर बात याद रखने की आदत थी
हमेशा माफ़ी मांगने के डर लगता था
पर गलतियाँ करना उस की आदत थी
वो जो दिल ओ जान निछावर करता था मुझ पे
मगर छोटी सी बात पे रूठना उस की आदत थी
हम उस के साथ चल दिए यह जानते हुए भी
राह में हर एक को छोड़ देना उस की आदत थी।
हर एक से लड़ना उस की आदत थी
वो जिसको तन्हाई से डर लगता था
मगर तन्हाई में रहना उस की आदत थी
वो मेरे हर झूठ से खुश होता
जिसे हमेशा सच बोलने की आदत थी
वो एक आंसू भी गिरने पर खफ़ा होता था
जिसे तन्हाई में रोने की आदत थी
वो कहता था कि मुझे भूल जाएगा
जिसे मेरी हर बात याद रखने की आदत थी
हमेशा माफ़ी मांगने के डर लगता था
पर गलतियाँ करना उस की आदत थी
वो जो दिल ओ जान निछावर करता था मुझ पे
मगर छोटी सी बात पे रूठना उस की आदत थी
हम उस के साथ चल दिए यह जानते हुए भी
राह में हर एक को छोड़ देना उस की आदत थी।
Subscribe to:
Posts (Atom)