तो क्या मालूम था
खवाब की दहलीज़ पे तुम दस्तक दोगी....
तुम्हारे साथ गुज़रे वो लम्हे
हकीकत से लगते हैं
जो मैंने छुआ था तुम्हे
जो तुम मुस्कराई थी....
हमारे बीच की वो बातें
वो तुम्हारी सासों का छुना मुझे
सब हकीकत सा लगता है....
सुबह जब आँख खुली
तो दिल बेचैन हो गया....
एक बोझ सा कुछ तो था सीने पे....
जो न उतारते बनता था
और न रखते ही बनता था....
खवाब टूट चुका था....
तुम नहीं थी....
वो साथ नहीं था....
फिर वहीँ दूरियां.....वही फासले....
एक ही ख्याल दिल मे आता था..
की काश वो रात कभी खत्म न होती....
पर कुछ सोच कर तसल्ली कर लेते हैं....
ख्वाब ही सही..............कुछ पल का साथ तो था....
No comments:
Post a Comment