Saturday, April 4, 2009

Raat aur Khawab

रात को जब मै सोया था
तो क्या मालूम था
खवाब की दहलीज़ पे तुम दस्तक दोगी....

तुम्हारे साथ गुज़रे वो लम्हे
हकीकत से लगते हैं
जो मैंने छुआ था तुम्हे
जो तुम मुस्कराई थी....

हमारे बीच की वो बातें
वो तुम्हारी सासों का छुना मुझे
सब हकीकत सा लगता है....

सुबह जब आँख खुली
तो दिल बेचैन हो गया....
एक बोझ सा कुछ तो था सीने पे....
जो न उतारते बनता था
और न रखते ही बनता था....

खवाब टूट चुका था....
तुम नहीं थी....
वो साथ नहीं था....
फिर वहीँ दूरियां.....वही फासले....

एक ही ख्याल दिल मे आता था..
की काश वो रात कभी खत्म न होती....
पर कुछ सोच कर तसल्ली कर लेते हैं....
ख्वाब ही सही..............कुछ पल का साथ तो था....

New Creation for Old Story

तितलियों को पकड़ना उस की आदत थी
हर एक से लड़ना उस की आदत थी

वो जिसको तन्हाई से डर लगता था
मगर तन्हाई में रहना उस की आदत थी

वो मेरे हर झूठ से खुश होता
जिसे हमेशा सच बोलने की आदत थी

वो एक आंसू भी गिरने पर खफ़ा होता था
जिसे तन्हाई में रोने की आदत थी

वो कहता था कि मुझे भूल जाएगा
जिसे मेरी हर बात याद रखने की आदत थी

हमेशा माफ़ी मांगने के डर लगता था
पर गलतियाँ करना उस की आदत थी

वो जो दिल ओ जान निछावर करता था मुझ पे
मगर छोटी सी बात पे रूठना उस की आदत थी

हम उस के साथ चल दिए यह जानते हुए भी
राह में हर एक को छोड़ देना उस की आदत थी।