Saturday, June 27, 2009

चाहा था एक फूल ने

दो चार बार हम जो कभी हम हँस-हँसा लिए
सारे जहान ने हाथ मे पत्थर उठा लिए

रहते हमारे पास तो यह टूटते ज़रूर
अच्छा किया जो आपने सारे सपने चुरा लिए

चाहा था एक फूल ने की साफ़ रहे राहें उसकी
हमने खुशी से कांटे अपने पांव मे चुभा लिए

जब हो सकी न बात तो हमने यही किया
अपनी ग़ज़ल के शेर कहीं गुनगुना लिए

अब भी किसी दराज़ मे मिल जायेंगे तुम्हे
वो ख़त जो तुम्हे दे न सके, लिख लिखा लिए

Friday, June 19, 2009

अकेला ख्वाब

अजनबी सी इस दुनिया मे अकेला एक ख्वाब हूँ
सवालो से खफा एक चोट सा जवाब हूँ
जो न समझ सके उनकी लिए 'कौन'
जो समझ गए उनके लिए किताब हूँ
आंखों से देखोगे तोः खुश पाओगे मुझको
दिल से देखोगे तोः दर्द का सैलाब हूँ